प्रो राजेंद्र सिंह रज्जू भैया की आज पुण्य तिथि है हम सब जानते हैं कि रज्जू भैया का जन्म एक संभ्रांत क्षत्रिय परिवार में 29 जनवरी 1922 को हुआ इनके पिता कुंवर बलबीर सिंह, स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश के पहले मुख्य अभियंता थे, रज्जू भैया इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी के एक लोकप्रिय प्राध्यापक और कालांतर में विभागाध्यक्ष तक रहे । संघ कार्य में व्यस्तता अधिक हो जाने पर विश्विद्यालय की सेवा से त्यागपत्र देकर अपना पूरा जीवन मां भारती के चरणों में समर्पित कर संघ कार्य को पूरा समय देने लगे।रज्जू भैया के जीवन का पूरा व्यक्तित्व उनके स्वरचित गीत की इस पंक्ति में झलकता है :
“पथ का अंतिम लक्ष्य नही,सिंहासन चढ़ते जाना।
सब समाज को लिए साथ में,आगे है बढ़ते जाना।।
इतना आगे इतना आगे,जिसका कोई छोर नही।
गुण की पूजा न्याय व्यवस्था,अखिल विश्व में है लाना।।”
पथ का अंतिम लक्ष्य नही, सिंहासन चढ़ते जाना।
पूज्य रज्जू भैया उच्च संस्कारों और दृढ़ विचारों वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी थे, माधव सदाशिव गोलवलकर गुरु जी के विचारों से रज्जू भैया बहुत प्रभावित थे। रज्जू भैया का कहना था कि लच्छेदार भाषण देकर अपनी छवि को निखारने के लिए तालिया बटोर लेना अलग बात है लेकिन नेपथ्य में रहकर दुसरों के लिए कुछ करना अलग बात है।
रज्जू भैया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघ चालक थे उनके व्यक्तित्व से जुड़ने और उनसे मिलने बात करने के लिए समाज के हर वर्ग, संप्रदाय और राजनीतिक दल के प्रमुख लोग लालायित रहते थे। रज्जू भैया कहते थे हमारे समाज पर हुए निरंतर आघातों के बाद भी हम जीवित हैं उसका मूल कारण हमारी समाज रचना ही है , जो आज भी विश्व को शांति का मार्ग बताने में समर्थ है। युद्ध ना हो विश्व में शांति हो सब लोग सुखी हो परस्पर वैमनस्य ना हो यह हमारी संस्कृति की कल्पना है। ‘ सर्वे भवंतु सुखिना’ । हमारे पूर्वजों ने ही कहा और उसे आचरण में भी उतार कर दिखाया। हम में अभी भी मनुष्य और मानवता को विकसित करने का सामर्थ्य है, आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंतः करण में इसकी विशिष्टता का साक्षात्कार हो।
पूज्य रज्जू भैया ने अपना अंतिम समय कौशिक आश्रम पुणे में बिताया जहां 14 जुलाई 2003 को उनका स्वर्गवास हुआ और उनका शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया वो अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण मानवता पर एक ऐसी अमिट छाप छोड़ गए जिससे अनन्त काल तक आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन होता रहेगा।
डॉ० विजय कुमार सिंह