काशी की पावन पुण्य धरा पर कभी संत रैदास ने कहा था- "जात-जात के फेर में उलझ रहे सब लोग। मनुष्यता को खा रहा रैदास जात का रोग।" इस कालजयी दोहे में महान संत रैदास ने अपने लोकानुभव एवं दूरदर्शिता से 14वीं-15वीं शताब्दी में ही मध्यकालीन शासन, प्रशासन, राजनीति एवं सत्तारूढ़ों को आईना दिखाया था। सामाजिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर समानता का पाठ पढ़ाया था। उन्होंने सदैव जातिगत विभेद एवं संकीर्ण ऊंच-नीच की मानसिकता वालों का प्रतिकार किया। क्योंकि उन्होंने इसे मनुष्यता एवं सामाजिक समानता के पथ का सबसे बड़ा रोड़ा माना था। वे स्वयं मनुष्य धर्म के सबसे बड़े अनुयायियों में से एक थे और 'जात के रोग' को मनुष्यता का सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। अफसोस, सैकड़ों वर्षों से रैदास जैसे संतों के मानवीय समानता एवं विभेदहीन विकास की साक्षी इस धरा पर आज भी सपा, बसपा जैसी पार्टियां अपने तुच्छ राजनीतिक स्वार्थ के लिए 'जात का रोग' को भुना रही हैं। उससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि वे इस घृणित एवं कुत्सित राजनीति के उन्हीं महापुरुषों एवं महानायकों को ही आधार बनाती जो हैं जो जातिगत विभेद के धुर विरोधी रहे थे। यह विसंगति न केवल विडंबनापूर्ण है बल्कि संतों/महापुरुषों का अपमान भी है। कहना न होगा, जातिगत विभाजन की स्वार्थगत राजनीति से यदि किसी वर्ग का जीवन स्तर बदहाल, बदतर एवं उपेक्षित हुआ है, तो वह निस्संदेह दलित गरीब एवं कमजोर वर्ग ही है। दलित वर्ग प्रदेश की आबादी का 20 से 21% है। इस वर्ग के समुचित विकास हेतु जो राजनीतिक इच्छाशक्ति आवश्यकता थी, दुर्भाग्य से वह 2017 के पूर्व में नदारद रही। दलित वर्ग को गुमराह करके उनके मताधिकार से सत्तासीन हुई बसपा और सपा जैसी पार्टियों ने दलित एवं गरीब शब्द का उपहास ही उड़ाया है। और उन्हें उनकी यथास्थिति में हाशिए पर ही, असहाय, छोड़ दिया है। जैसा कि कवि दिनकर ने लिखा है- "सौभाग्य न सब दिन सोता है", योगीजी के काल खंड में दलितों/गरीबों का सौभाग्य जगा है। एक कर्मजीवी संत की मानवीय कल्याण, सामाजिक समानता, एवं विभेदरहित विकास की अवधारणा को एक 'कर्मयोगी' ने अपने राजनीतिक जीवन में पूरी तरह उतारा है, क्रियान्वित किया है। और 'जात के रोग' पर ऐसा प्रहार किया है कि जाति-आधार पर फली फूली पार्टियां बौखला गई हैं। और बौखलाहट में जातिगत अस्तित्व के जर्जर हो चुके बेड़े को एकजुट होकर बचाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। 'सबका साथ एवं सबका विकास' की सद्नियत वाली योगी सरकार ने दलित एवं कमजोर वर्ग के उत्थान, कल्याण एवं विकास पर विशेष ध्यान दिया। न केवल कोरोना जैसे महासंकट के दौर में, बल्कि अपने पूरे कार्यकाल में। एक तरफ जहां बिना विभेद के मुफ्त टीकाकरण ने स्वास्थ्य रक्षा की वहीं 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना' के माध्यम से निष्पक्ष एवं निरंतर खाद्यान्न वितरण ने जीवन रक्षा भी की। जीवन संबंधी सुनिश्चितता के साथ-साथ 'प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना' एवं 'डॉक्टर अंबेडकर मेडिकल योजना' के द्वारा गम्भीर बीमारी के उपचार हेतु सहज एवं संपूर्ण आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। प्रबंध से दलित, गरीब एवं कमजोर वर्ग महामारी के बिना घर-जमीन बेचे खुशहाल जीवन जी सके। "सर्वे संतु निरामया:" के साथ-साथ योगी सरकार ने ग्रामीण-दलित वर्ग को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 20 हजार से लेकर 15 लाख तक की योजनाएं स्वीकृत की हैं। जिसमें 10000 का अनुदान भी दिया जाता है। इस क्रम में 'अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम' रोजगार उत्पन्न करने एवं उससे दलित समुदाय को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। जिसके अंतर्गत जरूरतमंदों को दुकान बनाने हेतु आर्थिक सहायता, ब्याज मुक्त ऋण आदि दिया जा रहा है। सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हुए 'अंबेडकर जयंती' पर माननीय मुख्यमंत्री द्वारा 'समरसता भोज' का आयोजन किया। 'मुख्यमंत्री कन्यादान योजना' के तहत गरीब एवं कमजोर वर्ग की लड़कियों के सामूहिक विवाह, और सामाजिक न्याय एवं विकास को सुनिश्चित कर "सर्वे भवंतु सुखिनः" और "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" की भावना को सिरे लगाया। डॉ. ऋषिकेश सिंह लोकपहल जौनपुर

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