वक्तागण एवं विचार माला
डॉ आलोक चौहान (निदेशक मेरठ इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी)- आलोक जी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी के 4 वर्ष के कार्यकाल में पर्यावरण सुधार के उल्लेखनीय कार्य हुए हैं। प्रयागराज में 8 घंटे में सर्वाधिक वृक्ष लगाने का विश्व रिकॉर्ड बना है। पॉलिथीन के निर्माण और उसकी खपत पर निर्णायक रोक लगायी गई है। वन्य जीवों, अभ्यारणों, पर्यटन स्थलों, पक्षी विहारों की बेहतरी के लिए कदम उठाये गए हैं और व्यापक स्तर पर नदी, पोखर, तालाबों को पुनर्जीवित किया गया है।
प्रो० डी.के.चौहान (वनस्पति वैज्ञानिक)- चौहान जी ने प्रदेश में वृक्षों और वनो के घटते घनत्व पर चिंता व्यक्त की और कहा की प्रकृति और मानव का विकास साथ-साथ हुआ है। प्रकृति से सीख और प्रेरणा पा कर ही मनुष्य सभ्य प्राणी बना है। ऐसे में यह विचित्र है कि हम प्रकृति से दूर जा रहे हैं और कृत्रिम जीवन शैली अपना रहे हैं। हमें धरती पर हरियाली बढ़ाने के चहुमुखी प्रयास करने होंगे।
प्रो० रामलखन सिंह(नीलांबर पीतांबर यूनिवर्सिटी, झारखंड)- रामलखन जी ने समझाया कि ग्लोबल वार्मिंग पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया की विश्व का सकल तापमान वर्ष 2050 तक वर्तमान औसत से1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढे, इसके विश्व स्तरीय प्रयास किये जा रहे हैं। धरती पर हरियाली का विस्तार एवं घनत्व बढ़ा कर ही हम ग्लोबल वार्मिंग पर रोक लगा सकते हैं।
प्रो० के.पी.सिंह (अलाहबाद यूनिवर्सिटी)- सिंह जी ने प्रदूषण से जैव विविधता पर हो रहे दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला। पर्यावरण के क्षरण से जीव जंतुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। साथ ही विदेशी परिवेश के जीव जंतु स्थानीय जीवजंतुओं से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। परिणामस्वरूप अनेक जीव प्रजातियों का लोप हो रहा है। संकट प्रजनन, कीटनाशकों का प्राणियों के जैविक तंत्र पर दुष्प्रभाव, मोबाइल टावर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन्स, ये सब भी जैवविविधता पर बुरा असर डाल रहे हैं।
प्रो० एम.पी.सिंह- सिंह जी ने कहा की प्रदूषण का प्रभाव भोजन और पानी के माध्यम से मानव जीवन पर पड़ रहा है। जैसा की कहावत है :जैसा खाए अन्न वैसा बने मन, जैसा पिए पानी, वैसी बने वाणी। भारी धातुओं और कीटनाशकों के अवशेषों का भोजन और पानी पाया जाना स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। जेनेटिक इंजीनियरिंग से जो फसलें तैयार की जा रही हैं वे भी मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं। इस सब से बचने का एकमात्र उपाय पर्यावरण संरक्षण ही है।
डॉ बाबू लाल आर्या (पूर्व वरिष्ठ कुलसचिव)- आर्य जी ने कहा कि राजस्थान एवं समीपवर्ती राज्यों की शुष्की राजमार्गों के माध्यम से उत्तर प्रदेश में आ सकती है। अतः राजमार्गों के दोनों ओर बिना विलम्ब के वृक्षारोपण किया जाना चाहिए।
उपेंद्र श्रीवास्तव (भूगर्भ जल वैज्ञानिक)- उपेंद्र जी ने समझाया की किस प्रकार से ग्लोबल वार्मिंग से मौसम में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं और किस प्रकार भूगर्भीय जल को जितनी मात्रा में निकला जा रहा है उतनी मात्रा में पृथ्वी के सतही जल से इसकी प्रतिपूर्ति नहीं हो पा रही है। इसके फलस्वरूप भूगर्भीय जल का स्तर लगातार गिर रहा है। इस समस्या का समाधान बेहतर जल प्रबंधन के द्वारा ही संभव है जो की राज्य सरकर के द्वारा युद्ध स्तर पर किया जा रहा है।