लोकतांत्रिक राजनीति के दौर में 'विकास' शब्द को प्रायः आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्र से जोड़कर इसकी व्याख्या की जाती रही है।
एक चर्चित लेखक का यह मानना है कि 'सर्वप्रथम राजनैतिक स्वतंत्रता को महत्त्व मिला ततपश्चात आर्थिक विकास को फिर समानता के विचार को और अब सांस्कृतिक स्वायत्तता को महत्व दिया जा रहा है।' आर्थिक विकास की प्रक्रिया में सामाजिक एवं वितरणजन्य न्याय के महत्व को नकारा नहीं जा सकता किंतु सांस्कृतिक अस्मिता की अभिव्यक्ति की आवश्यकता को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह भी विकास की प्रक्रिया को सीधे प्रभावित करती है परन्तु विकास के सांस्कृतिक पक्ष की चर्चा प्रायः नगण्य ही रही है या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो विकास और संस्कृति के परस्पर संबंध को कभी महत्व का विषय माना ही नहीं गया। इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार औपनिवेशिक मानसिकता या यूरोपियन परिवेश के वे तथाकथित विकसित एवं आधुनिक देश रहे जिसमें संस्कृति को सदैव एक 'यूनिफॉर्म सोसाइटी' की अवधारणा के रूप में ही प्रस्तुत किया गया। इन देशों के लिए विकास आधुनिकीकरण का पर्याय मात्र था जिसमें परंपरा एवं संस्कृति का स्थान सदैव गौण था।
आजादी मिलने के शुरुआती दौर से ही हमनें भी इन देशों के अंधानुकरण को ही 'मॉडर्न' एवं प्रगतिशील होने का प्रमाण मान लिया, जिसकी पुनरावृत्ति वर्ष दर वर्ष प्रचलित रही। इस असंगत अंधानुकरण में सर्वाधिक ह्रास हमारे गौरवशाली बहुमुखी परंपरा के मूल्यों की हुई। जिसकी निरंतर उपेक्षा करते हुए कुत्सित आयातित आधुनिकतावाद की अंधी दौड़ एवं होड़ में भेदभावपूर्ण अदूरदर्शी नीतियों को ही विकास का मानदंड मानते हुए क्षेत्रीय एवं प्रादेशिक उन्नति को आधार बनाया गया, परिणामस्वरूप विकृत विकास से निरंतर बीमारू राज्य की आधारशिला सरकार दर सरकार रखी गई, जिसका एक शीर्ष उदाहरण उत्तर प्रदेश हुआ करता था। अपराध, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद एवं जातिवाद जैसी विसंगतियों के कारण इसी प्रदेश के एक कवि ने लिख दिया कि "इस कदर कायर हूं कि उत्तर प्रदेश हूँ" जो कि न केवल विडंबनापूर्ण था बल्कि सरकारों के लिए एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य भी था कि किस प्रकार इस 'धूमिल' छवि को सुधारा जाए। परन्तु ज्यादातर अन्य के हाथ इस समस्या की नब्ज ही पता न लग सकी क्योंकि इसका एकमात्र कारण राजनीतिक एवं प्रशासनिक नहीं था बल्कि आधारभूत स्तर पर यह समस्या कई रूपों में सांस्कृतिक स्वरूप से भी जुड़ी हुई थी। इसे अब तक न केवल उपेक्षित बल्कि संवेदनशील विषय माना जाता रहा था लेकिन वर्तमान सरकार के दूरदृष्टा मुख्यमंत्री ने चैतन्यता के साथ इसे गंभीरता से लिया और पहली बार सांस्कृतिक परंपरागत मूल्यों पर जोर देते हुए विकास को संस्कृति से जोड़ा। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि भारत विविध भाषाई एवं धार्मिक आस्थाएं रखने वाला बहु-सांस्कृतिक मूल्यजनित चेतना धारित क्षेत्र है जिसमें एकपक्षीय विकास के वैचारिकी के स्थान पर 'सबका साथ सबका विकास', 'सर्वे भवंतु सुखिनः' की संकल्पना ही सच्चे विकास की इबारत लिखने हेतु आवश्यक मानी गई है।
अतः इस अपूर्व अद्भुत रचनात्मक मॉडल को केंद्र में रखते हुए हमारे वर्तमान यशस्वी मुख्यमंत्री योगी जी ने सकारात्मक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाते हुए जहां एक ओर सांस्कृतिक विरासत की समृद्धिगत विशिष्टता की अभिव्यक्ति हेतु राम मंदिर निर्माण, ब्रज तीर्थ क्षेत्र विकास परिषद गठन, चौरी-चौरा शताब्दी वर्ष जैसे महनीय योजनाओं एवं कार्यक्रम आयोजनों को मूर्त रूप देकर प्रदेश को धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्यटन में राष्ट्र के प्रथम स्थान का राज्य बनाया।
साथ ही स्वार्थगत कुत्सित राजनीति के विसंगत विकास से उत्पन्न अपराधीकरण, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जातिवाद, एवं भाई-भतीजावाद जैसी रूढ़ियों एवं विद्रूपताओं की समूल विनष्टि हेतु सुदृढ़ राष्ट्रवादी, सांस्कृतिक एवं कल्याणकारी चेतना से प्रेरित होकर अपराधियों, माफियाओं, तथा उपद्रवियों आदि के खिलाफ उनकी अवैध संपत्ति जब्त एवं ध्वस्त करने सहित अन्य कार्यवाहियों से दंगा मुक्त यू.पी. की अकल्पनीय छवि निर्मित करना, भर्ती संबंधी अनियमितताओं जैसे भ्रष्टाचार पर तत्क्षण अंकुश लगाने संबंधी एक्शन से युवा प्रतिभागी अभ्यर्थियों में मेहनत के प्रतिफल संबंधी आशा एवं विश्वास जगाना, महिला सुरक्षा कानून की सुदृढ़ता से जनसुरक्षा एवं सहभागिता को बढ़ावा देने संबंधी महत्वपूर्ण सराहनीय प्रयासों द्वारा समरसता एवं जनपक्षधरता को नए सिरे से स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
जन सांस्कृतिक समरसता के साथ-साथ सरकार का वास्तविक विकास मॉडल भी उतना ही अनुकरणीय एवं ध्यानाकर्षण योग्य है। योजनाओं के अधिकतम लाभ, सर्वसुगम पहुंच एवं प्रभावी क्रियान्वयन हेतु उसे टेक्नोलॉजी से जोड़ना, कोरोना जैसे अति संकटकालीन दौर में सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्य के जनजीवन रक्षा हेतु कर्मठता एवं मुस्तैदी के साथ न केवल नियंत्रण बल्कि उसका सफल समाधान कर मील का पत्थर स्थापित करना, राज्य को 'ईज आफ डूइंग बिजनेस' में दूसरे स्थान पर लाकर यू.पी. को देश के दूसरे नंबर की इकोनॉमी वाला राज्य बनाना, 'एक्सप्रेस-वे' के माध्यम से बेहतर कनेक्टिविटी उपलब्ध कराकर नूतन यू.पी. की आधारशिला रखने जैसे विशिष्ट एवं उल्लेखनीय कार्य न केवल समरसता एवं विकास के अप्रतिम समन्वयकारी मॉडल की मिसाल प्रस्तुत करते हैं बल्कि उनके ध्येय वाक्य 'इरादे नेक काम अनेक' को पूर्णरूपेण चरितार्थ भी करते हैं।
डॉ ऋषिकेश सिंह
प्रयागराज